“प्रबल प्रेम के पाले पड़कर,
प्रभू को नियम बदलते देखा।
आपका मान टले टल जाये,
पर भक्त का मान न टलते देखा।”
भगवान के इस भाव को दर्शाने वाले रंगों के त्योहार होली की काशी पत्रिका की ओर से आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।
होली यानि रंगों का त्यौहार सिर्फ एक त्यौहार न होकर झूम उठने का उत्सव है, जो वापस हमें हमारे बचपन में ले जाता है। चाहे बच्चे हो या बड़े होली के रंग में खो जाते है और जातिभेद, वर्णभेद और आपसी मनमुटाव भुलाकर एक-दूसरे पर रंग डालकर दोस्ती का नया रंग लगा लेते हैं। होली के दिन हम सिर्फ रंगों से खेलते ही नहीं, बल्कि अपनी सूनी जिन्दगी में दुबारा खुशी के ढेरो रंग भर देते हैं। होली हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है।
जानिए क्यों मनाया जाता है होली का त्यौहार
होली कब पहली बार मनाई गई इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है सबसे पहले इसकी शुरुआत आर्यों के समय में हुई थी। तब इसे ‛होलाका’ कहा जाता था और इस दिन आर्यों द्वारा नवात्रैष्टि यज्ञ किया जाता था।
ऐसा नहीं है कि होली सिर्फ हिंदुओं द्वारा मनाई जाती है। मुगलकालीन समाज में भी होली खेलने का वर्णन मिलता है। अकबर से लेकर बहादुर शाह जफर के द्वारा होली मनाये जाने का उल्लेख इतिहासिक किताबो में मिलता है। शाहजहाँ के काल में होली को ईद-ए-गुलाबी कहा जाता था। इसके अलावा कई प्राचीन चित्रों में जहाँगीर को होली खेलते दर्शाया गया है।
होली से जुड़ी पौराणिक कहानियां
जिस तरह हर त्यौहार को मनाने के पीछे एक वजह होती है। होली के पर्व के पीछे भी कई पौराणिक कथाएं है। इनका उल्लेख कई धार्मिक किताबों में मिलता है।
होली को लेकर यह कहानी सबसे प्रसिद्ध और प्रमाणिक कथा मानी जाती है। इस कहानी के अनुसार प्राचीन समय में दैत्यों का एक महाशक्तिशाली राजा था, जिसका नाम हिरण्यकशिपु था। हिरण्यकशिपु विष्णु विरोधी था और अपने आप को ईश्वर मानता था। उसके आदेशनुसार प्रजा का कोई भी व्यक्ति भगवान विष्णु की पूजा नहीं कर सकता था। ऐसा करने पर उन्हें मृत्युदंड दिया जाता, लेकिन उसका पुत्र प्रहलाद विष्णु भक्त था और अपने पिता के बार बार मना करने के बावजूद उसने भगवान विष्णु की भक्ति नहीं छोड़ी। फलस्वरूप हिरण्यकशिपु ने कई बार प्रहलाद को मारने की कोशिश की, लेकिन विष्णु कृपा से वह हर बार बच जाता। अंत में हिरण्यकशिपु ने भक्त प्रहलाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका की सहायता ली, जिसे आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। आदेशनुसार होलिका प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठी। ईश्वर कृपा से प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ और होलिका स्वयं आग से जल गई। तब से इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होलिका का दहन किया जाता है।
होली और मथुरा का महत्व
मथुरा में होली को भगवान कृष्ण से जोड़ कर देखा जाता है। कथा के अनुसार जब कंस को पता चला कि उसकी बहन देवकी की आठवी संतान जीवित है, तो उसने आसपास के सभी गांव के नवजात शिशुओं को मारने के लिए पूतना नाम की राक्षसी की सहायता ली। पूतना ने जब कृष्ण को अपने जहरीले दुग्धपान से मारने की कोशिश की, तो नवजात कृष्ण ने पूतना का वध कर दिया। तब गांव वालों ने नाच-गा कर इस दिन को मनाया। तब से मथुरा में होली मानाने के प्रचलन माना जाता है।
मनु और नर-नारायण का जन्मदिवस
पुराणों के अनुसार होली के दिन ही नर नारायण देव का जन्म हुआ था। यह भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। साथ ही हिन्दू पुराणों के अनुसार धरती पर जन्म लेने वाले पहले इंसान मनु का भी जन्म इसी दिन हुआ था।
■ काशी पत्रिका