अपने चेहरे से जो जाहिर है छुपायें कैसे,
तेरी मर्जी के मुताबिक नजर आयें कैसे!
घर सजाने का तसव्वुर तो बहुत बाद का है,
पहले ये तय हो की इस घर को बचाएं कैसे।
कहकहा आँख का बर्ताव बदल देता है,
हंसने वाले तुझे आंसू नजर आयें कैसे।
कोई अपनी ही नजर से तो हमें देखेगा,
एक कतरे को समंदर नजर आयें कैसे।
■ वसीम बरेलवी