एक सेठजी ने अपने दामाद को तीन लाख रुपये व्यापार के लिए दिए। उसका व्यापार बहुत अच्छा जम गया, लेकिन उसने रुपये ससुरजी को नहीं लौटाए। आखिर दोनों में झगड़ा हो गया विवाद इतना बढ़ा कि दोनों का एक-दूसरे के यहां आना-जाना बंद हो गया। घृणा व द्वेष का आंतरिक संबंध अत्यंत गहरा हो गया। सेठजी, हर समय हर संबंधी के सामने अपने दामाद की निंदा-निरादर व आलोचना करने लगे।
सेठजी अच्छे साधक भी थे, लेकिन इस कारण उनकी साधना लड़खड़ाने लगी। भजन-पूजन के समय भी उन्हें दामाद का चिंतन होने लगा। मानसिक व्यथा का प्रभाव तन पर भी पड़ने लगा, बेचैनी बढ़ गई। समाधान नहीं मिल रहा था। आखिर वे एक संत के पास गए और अपनी व्यथा सुनाई।
संतश्री ने कहा, ‘बेटा ! तू चिंता मत कर। ईश्वरकृपा से सब ठीक हो जाएगा। तुम कुछ फल व मिठाइयां लेकर दामाद के यहां जाना और मिलते ही उससे केवल इतना कहना, ‘बेटा! सारी भूल मुझसे हुई है, मुझे “क्षमा” कर दो।’
सेठजी ने कहा, “महाराज! मैंने ही उनकी मदद की है और “क्षमा” भी मैं ही मांगू!”
संतश्री ने उत्तर दिया, “परिवार में ऐसा कोई भी संघर्ष नहीं हो सकता, जिसमें दोनों पक्षों की गलती न हो। चाहे एक पक्ष की भूल एक प्रतिशत हो, दूसरे पक्ष की निन्यानवे प्रतिशत, पर भूल दोनों तरफ से होगी।”
सेठजी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उन्होंने पूछा, “महाराज! मुझसे क्या भूल हुई?”
संतश्री बोले, “बेटा! तुमने मन ही मन अपने दामाद को बुरा समझा- यही है तुम्हारी पहली भूल। तुमने उसकी निंदा, आलोचना व तिरस्कार किया– यह है तुम्हारी दूसरी भूल। क्रोधपूर्ण आंखों से उसके दोषों को देखा– यह है तुम्हारी तीसरी भूल। कानों से उसकी निंदा सुनी– यह है तुम्हारी चौथी भूल। हृदय में दामाद के प्रति क्रोध व घृणा है– यह है तुम्हारी आखिरी भूल।”
अपनी इन भूलों से तुमने अपने दामाद को दुःख दिया है। तुम्हारा दिया दुःख ही कई गुना हो तुम्हारे पास लौटा है। जाओ, अपनी भूलों के लिए “क्षमा” मांगो, नहीं तो तुम न चैन से जी सकोगे, न चैन से मर सकोगे। क्षमा मांगना बहुत बड़ी साधना है और तुम तो अच्छे साधक हो।”
सेठजी की आंखें खुल गईं संतश्री को प्रणाम कर वे दामाद के घर पहुंचे। सब लोग भोजन की तैयारी में थे। उन्होंने दरवाजा खटखटाया। दरवाजा उनके दोहीते ने खोला। सामने नानाजी को देखकर वह अवाक् सा रह गया और खुशी से झूमकर जोर-जोर से चिल्लाने लगाः “मम्मी! पापा!! देखो कौन आए! नानाजी आए हैं, नानाजी आए हैं..।”
माता-पिता ने दरवाजे की तरफ देखा। सोचा, ‘कहीं हम सपना तो नहीं देख रहे!’ बेटी हर्ष से पुलकित हो उठी, ‘अहा! पंद्रह वर्ष बाद आज पिताजी घर पर आए हैं।’ प्रेम से गला रुंध गया, कुछ बोल न सकी। सेठजी ने फल व मिठाइयां टेबल पर रखीं और दोनों हाथ जोड़कर दामाद को कहा, “बेटा! सारी भूल मुझसे हुई है, मुझे क्षमा करो।”
“क्षमा” शब्द निकलते ही उनके हृदय का प्रेम अश्रु बनकर बहने लगा। दामाद उनके चरणों में गिर गए और अपनी भूल के लिए रो-रोकर क्षमा याचना करने लगे। ससुरजी के प्रेमाश्रु दामाद की पीठ पर और दामाद के पश्चाताप व प्रेममिश्रित अश्रु ससुरजी के चरणों में गिरने लगे। पिता-पुत्री से और पुत्री अपने वृद्ध पिता से क्षमा मांगने लगी। क्षमा व प्रेम का अथाह सागर फूट पड़ा। सब शांत, चुप, सबकी आंखों से अविरल अश्रुधारा बहने लगी। दामाद उठे और रुपये लाकर ससुरजी के सामने रख दिए।
ससुरजी कहने लगे, “बेटा! आज मैं इन कौड़ियों को लेने के लिए नहीं आया हूं। मैं अपनी भूल मिटाने, अपनी साधना को सजीव बनाने और द्वेष का नाश करके प्रेम की गंगा बहाने आया हूं। मेरा आना सफल हो गया, मेरा दुःख मिट गया। अब मुझे आनंद का एहसास हो रहा है।”
दामाद ने कहा, “पिताजी! जब तक आप ये रुपये नहीं लेंगे, तब तक मेरे हृदय की तपन नहीं मिटेगी। कृपा करके आप ये रुपये ले लें।
सेठजी ने दामाद से रुपये लिए और अपनी इच्छानुसार बेटी व नातियों में बांट दिए। सब कार में बैठे, घर पहुंचे।
हमें भी अपने दिल में “क्षमा” रखनी चाहिए अपने सामने छोटा हो या बड़ा अपनी गलती हो या न हो क्षमा मांग लेने से सब झगड़े समाप्त हो जाते हैं।
सदैव प्रसन्न रहिए, जो प्राप्त है- वही पर्याप्त है।
ऊं तत्सत…
