बहुत समय पहले की बात है मुल्तान (पंजाब) का रहने वाला एक ब्राह्मण उत्तर भारत में आकर बस गया। जिस घर में वह रहता था उसकी ऊपरी मंजिल में कोई मुगल-दरबारी रहता था। प्रातः नित्य ऐसा संयोग बन जाता कि जिस समय ब्राह्मण नीचे ‘गीत-गोविन्द’ के पद गाया करता, उसी समय मुगल ऊपर से उतरकर दरबार को जाया करता था। ब्राह्मण के मधुर स्वर तथा ‘गीत-गोविन्द’ की ललित आभा से आकृष्ट होकर वह सीढ़ियों में ही कुछ देर रुककर सुना करता था।
जब ब्राह्मण को इस बात का पता चला तो उसने उस मुगल से पूछा कि “सरकार! आप इन पदों को सुनते हैं, पर कुछ समझ में भी आता है?”
मुगल बोला- समझ में तो एक लफ्ज(अक्षर) भी नहीं आता, पर न जाने क्यों उन्हें सुनकर मेरा दिल गिरफ्त हो जाता है। तबियत होती है इन्हें सुनता ही रहूं। आखिर किस किताब में से आप इन्हें गाया करते हैं? ब्राह्मण- सरकार! ‘गीतगोविन्द’ के पद हैं ये। यदि आप पढ़ना चाहे, तो मैं आपको पढ़ा दूंगा। इस प्रस्ताव को मुगल ने स्वीकार कर लिया और कुछ ही दिन में उन्हें सीखकर स्वयं उन्हें गाने लग गया।
एक दिन ब्राह्मण ने उन्हें कहा-आप गाते तो हैं, लेकिन हर किसी जगह इन पदों को नहीं गाना चाहिए। आप इन अद्भुत अष्टापदियों के रहस्य को नहीं जानते, क्योंकि जहां कहीं ये गाये जाते हैं भगवान श्रीकृष्ण वहां स्वयं उपस्थित रहते हैं। इसी लिए आप एक काम करें। जब कभी भी आप इन्हें गाये, तो श्याम-सुन्दर के लिए एक अलग आसान बिछा दिया करें। मुगल ने कहा- यह तो बहुत मुश्किल है, क्योंकि दरबार से वक्त-बेवक्त बुलावा आ जाता है और जाना पड़ता है।
ब्राह्मण ने सुझाव दिया कि फिर आप सरकारी काम खत्म हो जाने के बाद इन्हें एकांत में गाया करें। किंतु मुगल का कहना था कि पदों को गाये बिना नहीं रह सकता और काम तो ऐसा है कि कई दफे तीन-तीन दिन और रात भी घोड़े की पीठ पर बैठकर गुजारनी पड़ती है।
ब्राह्मण ने कहा- अच्छा तो फिर ऐसा किया जा सकता है कि घोड़े की जीन के आगे एक बिछौना श्यामसुंदर के विराजने के लिए बिछा लिया करें। और यह भावना मन में रख लें कि आपके पद सुनने के लिए श्यामसुंदर आकर बैठे हुए हैं। मुगल को यह बात जम गई और उसने यहीं नियम बना लिया।
एक दिन अपने अफसर के हुकुम से उसे तत्काल घोड़े पर सवार हो जाना पड़ा।जल्दबाजी में जीन के आगे बिछाने के लिए बिछौना भी साथ नहीँ ले जा सका। रास्ते में आदत के अनुसार पदों को गाने लगा। गाते हुए अचानक उसे लगा कि घोड़े के पीछे-पीछे घुंघरुओं की झनकार आ रही है। घोड़ा रोककर उतर गया और देखने लगा। तत्क्षण श्यामसुंदर ने प्रकट होकर पूछा- ‘सरदार’ ! आप घोड़े से क्यों उतर पड़े? और आपने इतना सुंदर गायन बीच में ही क्यों बंद कर दिया?
मुगल भगवान की रूपमाधुरी में ऐसा खो गया कि मुंह से आवाज ही नहीं निकलती थी। आखिर बोला- आप संसार के मालिक होकर भी मुझ मुगल के घोड़े के पीछे पीछे क्यों भाग रहे थे? भगवान ने मुस्कुराते हुए कहा- भाग नहीं रहा। मैं तो आपके पीछे-पीछे नाचता हुआ आ रहा हूं। क्या तुम जानते नहीं, जिन पदों को तुम गा रहे थे वो कोई साधारण काव्य नहीं हैं। तुम आज मेरे लिए गद्दी बिछाना भूल गए, तो क्या मैं भी नाचना भूल जाऊ! मुगल को अहसास हुआ कि उससे अपराध ही गया। दूसरे दिन प्रातः ही उसने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और वैराग्य लेकर श्यामसुंदर के भजन में लग गया।
सही है एक बार उन महाप्रभु की रूप माधुरी को देख लेने के बाद संसार में और क्या शेष रह जाता है। यहीं मुगल भक्त बाद में प्रभु कृपा से ‘मीर माधव’ नाम से विख्यात हुए।
ऊं तत्सत…
