एक धनी व्यक्ति के बेटे ने रो-रोकर घर में कोहराम मचा रखा था। उसका नया कीमती खिलौना, रोबोट खराब जो हो गया था और उसके दूसरे सभी खिलौने पुराने हो चुके थे। नए खिलौने का तुरंत आश्वासन पाने के लिए वह बालक अब बहुत देर से अपने पिता को गुस्से से घूरे जा रहा था। उनसे तत्काल कोई आश्वाशन न मिलने पर वह बालक बोला- ‘आई हेट यू डैड’ और उस बालक ने अपने गुस्से के अंतिम चरण में उस रोबोट खिलौने को तुरंत पूरे ज़ोर से अपने घर के बाहर फेंक कर दे मारा।
ईश्वर की इच्छा से, दुत्कारे गए उस खराब रोबोट खिलौने का एक टुकड़ा उछलकर, पास ही तपती धूप में काम कर रहे एक गरीब मजदूर के पास जा गिरा। मजदूर ने जैसे ही खिलौने के उस टुकड़े को देखा, तो उसकी आंखों में चमक आ गई। उसने झपटकर उसे उठाया, अपने तन के फटे व मैले-कुचैले कपड़े से ‘खिलौने’ को झाड़ा-पोंछा और टूटे हुए कप में मिट्टी भरकर खेल रहे अपने पुत्र को गर्व के साथ दे दिया।
उस ‘खिलौने’ को पाकर मजदूर के बेटे की ख़ुशी का तो जैसे कोई ठिकाना ही नहीं रहा। उसे लग रहा था मानों उससे अच्छे पिता दुनिया में किसी के नहीं हो सकते। उसने अपने पुराने ‘खिलौने’ टूटे हुए कप को तुरंत फेंकते हुए कहा- ‘पिताजी, आप कितने अच्छे हैं।’
मित्रों, यह हमें सिखाता है कि हम कैसे छोटी-छोटी खुशियों को ठोकर मार देते हैं और सबकुछ पाकर भी जिजीविषा खत्म नहीं होती। वहीं, छोटी-छोटी खुशियां बटोर कर हम दुनिया के सबसे खुशहाल व्यक्ति भी बन सकते हैं।
ऊं तत्सत…
