पूना (महाराष्ट्र) के एक स्कूल में समारोह चल रहा था। मुख्य द्वार पर एक स्वयंसेवक नियुक्त था, जिसे अतिथियों के अभिवादन का कार्य सौंपा गया था। इस कार्यक्रम में उस समय मुख्य अतिथि के रूप में मुख्य न्यायाधीश महादेव गोविंद रानाडे आए।
जैस ही वे वहां पहुंचे, तो उस स्वयं सेवक ने उन्हें रोक कर निमंत्रण पत्र की मांग की। रानाडे ने शालीनता से कहा, ‘मेरे पास निमंत्रण पत्र नहीं है।’ तब स्वयंसेवक ने कहा, ‘क्षमा करें आप अंदर नहीं जा सकते हैं।’
मुख्य द्वार पर रानाडे को देखकर स्वागत समिति के सदस्य तुरंत वहां पहुंचे। वह उन्हें अंदर ले जाने लगे। तब उस स्वयंसेवक ने कहा, ‘भेदभाव की नीति मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है। ऐसी दखलअंदाजी से मैं अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर पा रहा हूं।’ आगे चलकर यही स्वयंसेवक गोपाल कृष्ण गोखले के नाम से मशहूर हुए।
मित्रों, अपने कार्य को पूरी निष्ठा के साथ सम्पन्न करना ही एक कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति की पहचान है। कई बार ऐसे में किसी अपने-पराए को भी टोकना पड़ता है, उन्हें सचेत करना पड़ सकता है।
ऊं तत्सत…
