बहुत समय पहले की बात है। एक जंगल में एक चूहा था, जो हमेशा बिल्ली के डर से सहमा-सहमा रहता था। बिल्ली के डर के कारण वो अक्सर अपने बिल में ही छुप कर रहता था, न तो अपने साथी चूहों के साथ खेलता और न ही बाहर निकलने का साहस जुटा पाता था।
एक दिन एक बुजर्ग ने उस डरपोक चूहे को एक चमत्कारी स्वामीजी के बारे में बताया, जो सबकी मदद करते थे। डरपोक चूहा बड़ी हिम्मत कर बिल के बाहर निकला और स्वामीजी के पास गया। चूहे ने अपनी समस्या स्वामीजी को बताई और मदद की गुहार लगाकर रोने लगा। स्वामीजी को उस चूहे पर दया आने लगी और उन्होंने उस चूहे को आशीर्वाद देकर अपने शक्ति से बिल्ली बना दिया।
कुछ दिनों तक बिल्ली ठीक रही, पर अब उसे कुत्तों का डर सताने लगा। वह फिर स्वामीजी के पास जाकर रोने लगा। स्वामीजी ने उसे अपनी शक्ति से कुत्ता बना दिया। कुत्ता बनने के बाद वह जंगल में शेर से डरने लगा। स्वामीजी ने उसे शेर बना दिया।
शेर की ताकत और क्षमता होने के बावजूद अब वह शिकारी से डर-डर कर रहने लगा। वह फिर से स्वामीजी के पास गया और मदद की गुहार लगाने लगा। स्वामीजी ने शेर की बात सुनकर उसे फिर से चूहा बना दिया और कहा, “मैं अपनी शक्ति से तुम्हें चाहे जैसा बलवान शरीर दे दूं, किंतु तुम्हारी कोई भी मदद नहीं कर सकता। क्योंकि तुम्हारा दिल हमेशा उस डरपोक चूहे वाला ही रहेग।”
यह सिर्फ एक कहानी नहीं है, बल्कि हममे से बहुत से लोगों की यही हकीकत है। आज हम सब किसी न किसी डर के खौंफ में जी रहे हैं, अस्वीकृति का डर, विफलता का डर…जिससे हम उस मुकाम तक नहीं पहुंच पाते, जिसके हम काबिल हैं, क्योंकि “जो डर गया समझो, मर गया!” इसी लिए अपने डर को दूर भगाकर मेहनत पर विश्वास करना सीखें, क्योंकि “डर के आगे जीत है।”
ऊं तत्सत…
