बहुत समय पहले की बात है एक सरोवर में बहुत सारे मेंढक रहते थे। सरोवर के बीचो-बीच एक बहुत पुराना धातु का खंभा भी लगा हुआ था, जिसे उस सरोवर को बनवाने वाले राजा ने लगवाया था। खंभा काफी ऊंचा था और उसकी सतह भी बिलकुल चिकनी थी।
एक दिन मेंढकों के दिमाग में आया कि क्यों न एक रेस करवाई जाए। रेस में भाग लेने वाली प्रतियोगियों को खंभे पर चढ़ना होगा और जो सबसे पहले ऊपर पहुंच जाएगा, वही विजेता माना जाएगा। रेस का दिन आ पहुंचा, चारो तरफ बहुत भीड़ थी, आस-पास के इलाकों से भी कई मेंढक इस रेस में हिस्सा लेने पहुंचे। माहौल में सरगर्मी थी, हर तरफ शोर ही शोर था।
रेस शुरू हुई, लेकिन खंभे को देखकर भीड़ में एकत्र हुए किसी भी मेंढक को यकीन नहीं हुआ कि उनमें कोई भी ऊपर तक पहुंच पाएगा। हर तरफ यही सुनाई देता, “अरे ये बहुत कठिन है..“वो कभी भी ये रेस पूरी नहीं कर पाएंगे.. “सफलता का सवाल ही नहीं.. इतने चिकने खंभे पर चढ़ा ही नहीं जा सकता”।
हो भी यही रहा था, जो भी मेंढक कोशिश करता, वो थोड़ा ऊपर जाकर नीचे गिर जाता, कई मेंढक दो-तीन बार गिरने के बावजूद अपने प्रयास में लगे थे। भीड़ भी चिल्लाए जा रही थी, “ये नहीं हो सकता, असंभव”, उत्साहित मेंढक भी ये सुन-सुनकर हताश हो अपना प्रयास छोड़ दिए।
उन्हीं मेंढकों में एक छोटा सा मेंढक था, जो बार-बार गिरने पर भी उसी जोश के साथ ऊपर चढ़ने में लगा हुआ था। वह लगातार ऊपर की ओर बढ़ता रहा और अंततः वह खंभे के ऊपर पहुंच गया और इस रेस का विजेता बना। उसकी जीत पर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ, सभी मेंढक उसे घेरकर खड़े हो गए और पूछने लगे, “तुमने ये असंभव काम कैसे कर दिखाया, भला तुम्हें अपना लक्ष्य प्राप्त करने की शक्ति कहां से मिली, जरा हमें भी बताओ कि तुमने ये विजय कैसे प्राप्त की?”
तभी पीछे से एक आवाज आई, “अरे उससे क्या पूछते हो, वह तो बहरा है!” दोस्तों हमारे भीतर अपना लक्ष्य प्राप्त करने की काबिलियत होती है, पर हम अपने चारों तरफ मौजूद नकारात्मकता की वजह से खुद को कम आंक बैठते हैं और हमने जो बड़े-बड़े सपने देखे होते हैं, उन्हें पूरा करने की कोशिश भी नहीं करते हैं |
आवश्यकता इस बात की है कि हम हमें कमजोर बनाने वाली हर एक आवाज के प्रति बहरे और ऐसे हर एक दृश्य के प्रति अंधे हो जाएं और मन लगाकर कोशिश करें, तब हमें सफलता के शिखर पर पहुंचने से कोई नहीं रोक पाएगा।
ऊं तत्सत…
