बड़े-बुजुर्गों से सुना था ‛कूड़े का भी दिन बदलता है’। लेकिन भला हो देश की सियासत और सियासतदारों का जिन्होंने ज्ञान-विज्ञान-रसायन-शास्त्र सब कुछ को बदल कर रख दिया। फिर भला, एक अदने से मुहावरे-कहावत की क्या बिसात जो ठहर जाए। सो सरकारें बदलती रहीं, नहीं बदली तो जनता की स्थिति!
खैर, “लोक” की तरफ से आंख मूंद लें, तो गौमाता के बाद आजकल “भोलेनाथ” के दिन जरूर फिर गए हैं। 2014 में “हर हर मोदी…” से उनके दिन जो बहुरने शुरू हुए, सो थमने का नाम ही नहीं ले रहा। अब तो भोलेनाथ कैलाश में भी अकेले नहीं रहे।
राम की किस्मत में शायद एक बार फिर वनवास ही लिखा है, तो उन्हें उनकी किस्मत पर छोड़ देश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियां सिर्फ “हर हर…” बोल रही हैं। वैसे भी, डॉलर-रुपया, पेट्रोल-डीजल, रोजी-रोजगार, शिक्षा-अपराध… फालतू के विषयों में फंसकर किसका भला हुआ है, जब जन्म-मरण सब ईश्वर के हाथ है, तो क्यों न यह सब भी उन्हीं के भरोसे छोड़ हम सब भी बोले, “हर हर बम बम”। बस कहावत में थोड़े बदलाव की जरूरत है, “राम भरोसे” को “शिव भरोसे” कर दें। रुकिये, यह भी जाने दीजिए क्योंकि कब जाने किस देव कृपा की आवश्यकता आन पड़े! वैसे, रामजी बुरा भी नहीं मानेंगे। आखिर उन्होंने भी तो रावण वध से पहले अपने प्रभु शिव की स्थापना की थी! और क्या मालूम इसी बहाने प्रभु श्रीराम की भी वनवास से मुक्ति हो जाए।
व्यर्थ के चक्करों में पड़ने से बेहतर हम भी थोड़ा शिवमय हो जाएं और “हर हर…” की पुकार लगा लें।
■ सोनी सिंह