होली और अष्टक के संयोग से बने शब्द ‘होलाष्टक’ का अर्थ है, होली से पहले के आठ दिन, यानी फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर फाल्गुन की पूर्णिमा तक का समय। पूर्णिमा की रात को ही होलिका दहन करने की परंपरा है। शास्त्रों के अनुसार होलाष्टक के दौरान किसी भी शुभ काम को करने की मनाही होती है। इस बार होलाष्टक 3 मार्च से शुरू होकर 9 मार्च तक रहेगा।
होलाष्टक की शुरुआत :
होलाष्टक के दिनों में ही होलिका दहन की लकड़ी और बाकी जरूरी सामान जुटाने शुरू कर देने की परंपरा है। इस दौरान भगवान कृष्ण और भगवान शिव की पूजा की जाती है। होलाष्टक के दौरान अलग-अलग दिनों में अलग-अलग चीजों से होली खेले जाने की भी परंपरा है। कहा जाता है कि इस दौरान प्रेम और खुशियों के लिए अगर हम कुछ भी प्रयास करें, तो वो सफल अवश्य होता है।
पौराणिक मान्यता :
मान्यता के अनुसार होली के पहले के इन आठ दिनों में प्रह्लाद को काफी यातनाएं दी गई थी। प्रह्लाद को फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी के ही दिन बंदी बनाया गया था। उसी दिन से प्रह्लाद को यातनाएं देनी शुरू कर दी गईं थीं। होलिका वाले दिन प्रह्लाद के पिता हिरणकश्यप की परेशानी देखकर उसकी बहन होलिका मदद करने के लिए आई। होलिका को आग में ना जलने का वरदान प्राप्त था। ऐसे में, वो प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई, तब भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद तो आग से बच गए, लेकिन होलिका इस अग्नि में जल गई। इन आठ दिनों में प्रह्लाद के साथ जो यातनाएं हुईं, उसी के चलते होलाष्टक के समय को अशुभ माना जाने लग गया।
इन दिनों, भूल से भी न करें ये काम :
होलाष्टक के दौरान किसी भी तरह के शुभ काम को करने की मनाही होती है। इस बात के पीछे की मान्यता के अनुसार होलाष्टक की शुरुआत वाले दिन ही भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। होलाष्टक के इन आठ दिनों में हर एक दिन ग्रह उग्र रूप में होते हैं, इसलिए इस दौरान कोई भी शुभ काम टाल दिया जाता है।
इस दौरान मांगलिक काम वर्जित माने गए हैं, किंतु इस दौरान जन्म और मृत्यु के बाद किए जाने वाले काम करने की कोई मनाही नहीं होती है।
अब विस्तार से समझिये इन आठ दिनों में आपको क्या काम नहीं करने हैं : सबसे पहले तो इस दौरान किसी भी तरह का कोई भी मांगलिक काम जैसे- शादी, भूमि पूजन, गृह प्रवेश या कोई नया व्यवसाय शुरू करना वर्जित माना गया है। होलाष्टक काल में नामकरण संस्कार, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश, विवाह संस्कार इत्यादि शुभ संस्कार भी नहीं किए जाने चाहिए। इस दौरान किसी भी तरह का यज्ञ, हवन इत्यादि भी नहीं करना चाहिए। होलाष्टक के दौरान नवविवाहित लड़कियों को अपने मायके में ही रहने की सलाह दी जाती है।
होलाष्टक में ये काम जरूर करें :
होलाष्टक में जहां मांगलिक कार्य वर्जित बताए गए हैं, वहीं कुछ ऐसे भी काम बताए गए हैं, जिन्हें करने से आपको शुभ फल की प्राप्ति हो सकती है।
मान्यता है कि होलाष्टक के दौरान किए गए व्रत और दान से इंसान को भगवान का आशीर्वाद मिलता है और उनके सभी कष्ट भी दूर हो जाते हैं। इस दौरान दान-पुण्य का विशेष लाभ बताया गया है। इन दिनों में आप अपनी इच्छानुसार किसी जरूरतमंद को कुछ भी दान दे सकते हैं।
होलाष्टक का महत्व:
ये आठ दिनों का समय जिसे होलाष्टक कहते हैं, वो भक्ति की शक्ति का प्रतीक माना गया है। कहते हैं कि इस समय के दौरान यदि तप किया जाए, तो बहुत शुभ होता है। होलाष्टक पर पेड़ की एक शाखा काटकर उसे जमीन में लगाने का रिवाज है। उसके बाद इस शाखा पर रंग-बिरंगे कपड़े बांधे जाते हैं। बता दें कि इसी शाखा को प्रह्लाद का रूप माना जाता है।
होलाष्टक का वैज्ञानिक महत्व:
होलाष्टक के पीछे एक वैज्ञानिक महत्व भी बताया जाता है, जिसके अनुसार ये वो समय होता है, जब मौसम में परिवर्तन हो रहा होता है। मौसम परिवर्तन के चलते हमारा मन कभी अशांत, कभी उदास, तो कभी चंचल होता है। ऐसे में, इस समय में किए हुए किसी भी काम का परिणाम शुभ नहीं हो सकता है, इसलिए अगर इस दौरान शुभ काम ना ही किए जाए, तो बेहतर होगा। होलाष्टक के खत्म होते ही रंग खेलकर खुशियां मनाने का रिवाज है। होलाष्टक के पीछे एक और वैज्ञानिक महत्व यह भी बताया जाता है, जिसके अनुसार होलाष्टक के पहले दिन यानि कि फाल्गुन शुक्लपक्ष की अष्टमी को चंद्रमा अपने उग्र रूप में रहता है। इसके बाद नवमी को सूर्य उग्र रूप में रहता है, इसी तरह दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु का उग्र रूप रहता है।
बताया जाता है कि इसी वजह से इन आठ दिनों में इंसान के दिमाग में अजीबोगरीब विकार, शंका इत्यादि उत्पन्न होते रहते हैं। ऐसे में, मुमकिन है कि इस दौरान शुरू किए गए काम बनने से पहले ही बिगड़ जाएं, इसलिए बेहतर होता है यदि हम इस दौरान कोई नया या शुभ काम शुरू ही ना करें।
होलाष्टक के समाप्त होने पर लोग रंग-अबीर उड़ा कर इस बुरे समय बीत जाने का जश्न मनाते हैं और खुशियों में डूब जाते हैं।
होलाष्टक
‘‘विपाशैरावतीतीरे शुतुद्रयाश्च त्रिपुष्करे। विवाहादिशुभे नेष्टं होलिकाप्राग्दिनाष्टकम्।।’’ (मुहूर्तचिन्तामणि श्लोक सं. 40)
‘‘ऐरावत्यां विपाशायां शतद्रौ पुष्करत्रये। होलिका प्राग्दिनान्यष्टौ विवाहादौ शुभे त्यजेत्।।’’ (मुहूर्त गणपति श्लोक सं. 204)
विपाशा (व्यास), इरावती (रावी), शुतुद्री (सतलज) नदियों के निकटवर्ती दोनों ओर स्थित नगर, ग्राम, क्षेत्र में तथा त्रिपुष्कर (पुष्कर) क्षेत्र में होलाष्टक दोष फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा (होलिका दहन) तिथि के आठ दिन पूर्व में विवाह, यज्ञोपवीत आदि शुभ कार्य वर्जित हैं। इस प्रकार लगभग सम्पूर्ण पंजाब प्रान्त में हिमांचल प्रदेश का कुछ भू-भाग तथा राजस्थान में अजमेर (पुष्कर) के समीपवर्ती आसपास के स्थानों (सम्पूर्ण राजस्थान नहीं) में ही विशेष सावधानी के लिए होलाष्टक दोष को मानना शास्त्र सम्मत है। देश के अन्य शेष भू-भागों में होलाष्टक दोष विचार का नियम लागू नहीं करना चाहिए, ऐसा शास्त्र सम्मत निर्णय है
॥शुभ होली ॥
■काशी पत्रिका