बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में आज महापर्व महाशिवरात्रि का अवसर है और भोलेपन में लिपटा काशी-वासियों का बनारसीपन पूरे भक्ति-भाव से महादेव को मगन रखने और बाबा का बाराती बनने को आतुर है। इस बार महाशिवरात्रि कई मायनों में खास है। दुर्लभतम नक्षत्र संयोग वाले इस महापर्व पर न केवल बाबा विश्वनाथ का श्रृंगार लुभावन होगा, बल्कि तीन-दिवसीय महा-महोत्सव में बनारसी छटा के तमाम रंग नजर आएंगे। तो आइए, काशी पत्रिका के संग लीजिए पौराणिक महाशिवरात्रि से लेकर सांस्कृतिक महा-महोत्सव तक का जायजा:-
काशी के कण-कण में शिव बसते हैं और शिव का संपूर्ण काशी में। तभी तो बनारसियों का महादेव के बिना एक पल नहीं ठहरता और स्वयं बाबा विश्वनाथ को मानो महादेव सुनने की लत लग गई है। महादेव की काशी में महाशिवरात्रि का महापर्व अपने आप में सभी आनंद समेटे हुए है। महाशिवरात्रि हमें हमारे होने का अहसास कराती है, सृष्टि-निर्माण से लेकर महानिर्वाण तक इसमें पूरा जीवन-दर्शन नजर आता है।
सृष्टि प्रारंभ की साक्षी महाशिवरात्रि
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का प्रांरभ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ। इसी दिन भगवान शिव का देवी पार्वती के साथ विवाह हुआ था। कश्मीर शैव मत में इस त्यौहार को हर-रात्रि और बोलचाल में ‘हेराथ’ या ‘हेरथ’ भी कहा जाता हैं।
नक्षत्रों की गणना में महाशिवरात्रि
विद्वानों के अनुसार फाल्गुन मास में कुंभ राशि और चंद्र श्रवण नक्षत्र के साथ जब सूर्य मकर राशि में आएंगे, तब कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि होगी और इसी रात महाशिवरात्रि मनाया जाएगा। इस बार 21 फरवरी की शाम 5.36 बजे तक त्रयोदशी तिथि रहेगी, उसके बाद चतुर्दशी तिथि शुरू होगी और 22 फरवरी तक रहेगी। शिवपुराण के अनुसार रात्रि के हर प्रहर में भगवान भोलेनाथ की पूजा का विशेष महत्व है। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को सिर्फ शिवरात्रि कहा जाता है, लेकिन फाल्गुन मास की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि कहा जाता है। इस बार महाशिवरात्रि पर रात्रि प्रहर की पूजा शाम 6.41 बजे से रात 12.52 बजे तक होगी।
58 साल बाद बना महासंयोग
महाशिवरात्रि पर इस बार कई दुर्लभ एवं शुभ संयोग बन रहे हैं, जिससे भोलेनाथ की पूजा, रूद्राभिषेक, व्रत और जागरण कई गुना फलदाई होंगे। शनि और चंद्रमा के साथ मकर राशि में रहने से पंच महापुरुष योग में से एक शश राजयोग और विष योग का निर्माण होगा। मकर राशि में शनि बर्गोत्तम होगा। ऐसा महासंयोग इसके पूर्व वर्ष 1961 में बना था। देवगुरु बृहस्पति अपनी राशि धनु में और दैत्य गुरु शुक्राचार्य अपनी उच्च राशि मीन में रहेंगे। सभी ग्रहों के चार स्थानों पर रहने से भगवान शिव से जुड़ा केदार योग भी है, जिसमें शिव आराधना से विशेष सिद्धि की मान्यता है।
तीन दिवसीय सांस्कृतिक महोत्सव
पर्यटकों को बनारस की सांस्कृतिक विरासत से परिचित कराने के लिए इस बार तीन दिवसीय महाशिवरात्रि महोत्सव मनाया जा रहा है। महाशिवरात्रि महोत्सव में देवाधिदेव महादेव शिव पर आधारित कत्थक, गायन, कवि सम्मेलन आदि आयोजन भी होंगे। इस बार बोट्स का मार्च पास्ट भी सुनिश्चित है, जिसमें 25 हैंड पेंटेड नाव और 5 सजे हुए बजड़े राजेंद्रप्रसाद घाट के सामने से गुजरेंगे। इनमें बनारस की संस्कृति और परंपरा की झलक दिखेगी, राजघाट पर दिन में 3 से 5 बजे तक बजड़े पर सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे।
कवि सम्मेलन से बोट फेस्टिवल तक
इस बार महा-महोत्सव के विविध रंग होंगे। सुनील जोगी के नेतृत्व में होने वाले कवि सम्मेलन में मदन मोहन समर, डॉ़ सुरेश अवस्थी, डॉ़ सांड बनारसी जैसे धाकड़ अपनी रचनाओं से बनारसियों को ओतप्रोत करेंगे। दूसरे दिन तृप्ति शाक्या व प्रेम प्रकाश दुबे के भजनों की सुरगंगा बहेगी, जबकि तीसरे दिन सुखदेव मिश्र के वादन व गणेश मिश्र गायन के साथ अग्निहोत्री बंधु के भजन की रसफुहार बरसेगी। 23 फरवरी को राजघाट पर बोट फेस्टिवल होगा। सुबह 9 बजे से 40 नौकाओं की रेस रविदास घाट से राजेंद्र प्रसाद घाट तक होगी और विजेता को नकद राशि और प्रशस्ति-पत्र भेंट किया जाएगा। इस तरह बाबा विश्वनाथ की नगरी बनारसीपन से ओतप्रोत महादेव की महा-महोत्सव की तैयारियों के लिए सज्ज है।
■ काशी पत्रिका
1 thought on “शिव और शिवा का संयोग महाशिवरात्रि”
धीरेन्द्र
(February 21, 2020 - 5:59 pm)महाशिवरात्रि एवं बनारस में होने वाले कार्यक्रम के बारे में बहुत ही रोचक एवं ज्ञानवर्धक जानकारी दी गई है। इसे पढ़ने से सुखद अनुभूति हुई।साधुवाद।