एक बार तैलंगस्वामी को तंग करने के इरादे से एक व्यक्ति ने दूध के बदले चूना घोलकर एक पात्र में रख दिया। स्वामीजी ने दूध का पात्र देखा और चुपचाप उसे पी लिया।
उस व्यक्ति ने सोचा जल्द ही चूना अपना असर दिखाएगा। लेकिन इसका उल्टा हुआ स्वामीजी को तो कुछ न हुआ, बल्कि उस व्यक्ति का जी मचलने लगा।
वह व्यक्ति स्वामीजी के चरणों में गिर गया। और अपनी गलती की माफी मांगने लगा। तब स्वामीजी ने कहा, ‘चूने का पानी भले मैंने पिया हो, लेकिन असर तुम पर भी हुआ! इसका एक ही कारण है और वो है कि हम दोनों के शरीर में एक ही आत्मा का वास है। इसी लिए दूसरों को कष्ट देने वाले को स्वयं भी कष्ट से गुजरना होगा। यही प्रकृति का नियम भी है।’
सार यह है मित्रों कि हमें दूसरों को कष्ट नहीं देना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने पर कभी न कभी, कहीं न कहीं यही कष्ट हमको भी भोगने पड़ते हैं।
ऊं तत्सत…
