हजरत इब्राहीम बलख के बादशाह थे। उन्होंने एक बार एक गुलाम खरीदा। अपनी स्वाभाविक उदारता से उन्होंने प्रश्न किया, ‘तेरा नाम क्या है?’
गुलाम ने उत्तर दिया, ‘जिस नाम से आप मुझे बुलाएं, वही मेरा नाम होगा मालिक।’
बादशाह ने पूछा,’तुम क्या खाओगे?’ गुलाम ने कहा, ‘जो आप खिलाएं।’ बादशाह ने पूछा, ‘तुम्हें किस तरह के कपड़े पसंद हैं?’
गुलाम ने कहा, ‘जो भी आप पहनने के दें, मालिक।’
बादशाह ने इस बार पूछा, ‘तुम कौन सा कार्य करना चाहोगे?’ गुलाम ने फिर वहीं उत्तर दोहराया, ‘जो आप कहें।’
इस बार बादशाह ने फिर पूछा, ‘तुम्हारी इच्छा क्या है?’
गुलाम ने कहा, ‘भला गुलाम की भी कोई इच्छा होती है।’ बादशाह उस गुलाम की हाजिरजबावी से इतना प्रसन्न हुआ कि तख्त से उठकर उसने कहा, सचमुच तुम मेरे उस्ताद हो, क्योंकि तुमने मुझे सिखा दिया कि प्रभु के सेवक को कैसा होना चाहिए।
ऊं तत्सत…
