एक नगर के नजदीक एक होटल था। जिसका मालिक दयालु और सज्जन व्यक्ति था। होटल अच्छी आमदनी देता था। उस सेठ का जीवन सुख से चल रहा था। परिवार में उसके कोई नहीं था, माता-पिता का देहांत काफी समय पहले हो चुका था। उसका विवाह भी नहीं हुआ था।
लालचंद्र की एक विशेषता थी कि वह अपने होटल में आने वाले हर विकलांग को मुफ्त भोजन कराता था। कई वर्षों तक यह कार्य निरंतर चलता रहा। वह रोज सुबह चिड़ियों को दाना भी दिया करता था। ऐसे करने पर उसे बहुत शांति मिलती थी, यह बात अमूमन अपने दोस्तों से कहा करता था।
एक दिन एक सज्जन ने लालचंद्र से पूछा, ‘आप ऐसा करते हैं, तो आपको नुकसान नहीं होता।’ तब लालचंद्र ने कहा, ‘मैं हर दिन पक्षियों का दाना देता हूं। मैंने गौर किया किसी अपाहिज पक्षी का दाना कोई अन्य पक्षी नहीं चुनता है। अगर पक्षियों में इतनी समझ है, तो मैं तो इंसान हूं। मुझे लगा मुझे भी हर विकलांग व्यक्ति को भोजन कराना चाहिए। ऐसा करने पर मुझे आत्मिक सुकून मिलता है।’
मित्रों, इंसान तो सभी होते हैं, लेकिन इंसानियत कुछ इंसानों में होती है और वह दूसरों के दुख में उन्हें खुश कर अपनी खुशियां खोजता है।
ऊं तत्सत…
