किसी शहर में चार ब्राह्मण मित्र रहते थे । वे बहुत गरीब थे। धनी बनने की चाहत में चारों अपने घर से निकलकर उज्जैन नगरी पहुंच गए। वहां पर उन्हें एक तपस्वी साधु मिले। साधु के चरणों में प्रणाम कर वे चारों बैठ गए ।
साधु ने उनसे वहां आने का कारण पूछा, तो चारों ने साधु के चरणों में गिरकर कहने लगे, “महाराज हम ब्राह्मण पुत्र हैं, किंतु निर्धन होने के कारण बहुत दुखी हैं, इसलिए जैसे भी हो, हमें अमीर बनने का रास्ता बताएं।”
साधु को दया आ गई । उन्होंने चार बत्तियां देकर कहा, ‘इन्हें लेकर तुम ऊंचे पहाड़ पर चढ़ जाओ, फिर इन्हें एक -एक करके फेंकना। जहां पर भी बत्ती गिरेगी वहीं पर तुम्हें खजाना मिलेगा।’
चारों पहाड़ पर पहुंच गए। पहले ने अपनी बत्ती फेंकी। वह जहां गिरी, उस स्थान को खोदने पर बहुत-सा तांबा निकला। तांबे को देखकर तीनों बोले- ‘यह तो बेकार है, इससे हम अमीर नहीं बन सकते । चलो और आगे चलते हैं ।’ लेकिन चौथे मित्र ने उनकी बात न मानते हुए कहा, ‘नहीं, मेरे लिए तो यही काफी है, अब मैं और आगे नहीं जाऊंगा।’ उसे वहीं पर छोड़कर वे तीनों आगे चले गए ।
कुछ आगे गए, तो दूसरे वाले ने अपनी बत्ती फेंकी। उस स्थान को खोदने से चांदी मिल गई । उसने खुशी से कहा “भाई लोगों, अब हमें और आगे जाने की जरूरत नहीं, इससे हम अमीर बन जाएंगे।’ उसकी बात सुन उन दोनों ने कहा, ‘भाई देख, पहले तांबा मिला, फिर चांदी। अब यदि आगे जाएंगे, तो सोना मिलेगा। इसी लिए हम दोनों आगे जाते हैं।’ यह कहकर वे दोनों आगे बढ़ गए।
जैसे ही वे आगे गए, तो तीसरे ने अपनी बत्ती फेंकी। उस स्थान को खोदने पर सोना मिल गया। वह सोने को पाकर अपने साथी से बोला, ‘भाई, अब और आगे जाने की जरूरत नहीं। अब तो हमें सोना मिल गया है।’ लेकिन चौथा साथी बोला, ‘भाई, हो सकता है आगे हमें हीरे मिल जाएं। पहले तांबा, फिर चांदी, फिर सोना, अब तो हीरे मिलेंगे …….हीरे। मैं तो अब हीरे लेने जा रहा हूं। तुम बेशक यहीं पर रहो।’
यह कहकर वह आगे बढ़ता गया। दूर पहाड़ी पर चढ़ उसने एक ऐसे प्राणी को देखा, जिसके सिर पर एक चक्र घूम रहा था और वह बेचारा खून से लथपथ खड़ा था। उसे देखकर वह उस व्यक्ति के पास जाकर पूछा, ‘भाई, यह क्या? तुम्हें क्या हो गया?’ अभी वह बोल ही रहा था कि चक्र उसके सिर पर से हटकर उस लड़के के सिर पर आ गया। वह डर और पीड़ा के मारे तड़पते हुए कहने लगा, ‘यह क्या हो गया!’ तब वह आदमी बोला, ‘इस पहाड़ी पर मैं भी धन के लोभ में ऐसी ही बत्ती लेकर आया था। मेरे आने से पहले यह किसी और व्यक्ति को जकड़े बैठा था। मैंने उसके पास जाकर अपनी लोभ की कहानी सुनाई, तो यह मुझे पकड़ कर बैठ गया ।अब तुम…’ मित्रों, लालच का कोई अंत नहीं होता, जिससे हम कई बार बड़ी मुसीबत में फंस जाते हैं।
ऊं तत्सत…
