वह अपने सीढ़ियों पर बैठे रहती और गेट का नीचला हिस्सा जो के खुला था, बाहर जाते धीरे-तेज़ कदमों को देखती रहती। एक पैरों का जोड़ा उसे बार-बार दुःखी करता। किसी वृद्ध महिला का लगता, उसकी मैली साड़ी औऱ घिसी हुई लगभग सतह से ही लगी उसकी चप्पल देख उसकी स्थिति को वह भी सोच कर रोती। समय से ही आते-जाते दिखने वाले वो पैर किसी के घर बर्तन माजने वालीं वृद्धा का हो सकता था ऐसा वह सोचा करती।
आज वह अपने बच्चे के साथ बाहर किसी काम हेतु निकली की सामने से एक छोटे कद की वृद्धा दिखीं, तुरंत पैरों पर नज़र पड़ी, लेक़िन वह खाली थे। समय कम था वृद्धा आगे निकली ही थीं के उसने रोक कर पूछा,’ दादी धूप में खाली पैर हैं, चप्पल टूट गई है न।’ उन्होंने कहा,’हाँ , कल रात से ही खाली पैर हूँ।’ उसने बीजली के फुर्ती से घर से लाकर रुपए दिए और चप्पल खरीद लेने का आग्रह कर आगे निकल गयी।
अगली शाम सीढ़ियों पर बैठे, गेट से बाहर उस पैर को ही देखने बैठी थी और थोड़े इंतज़ार के बाद वह खाली पैर चप्पल पहने नज़र आ ही गया। चप्पल तो पुरानी थी पर मन किसी नए उत्साह से भर गया। वह निश्चिंत होकर वहां से उठ गई।
प्रभु जैसे मन को गतिमान कर देते है। हांकते रहते है। चलो देखो आस-पास और सहायता करो। महिला का मन ऐसा प्रसन्न हुआ होगा जितना के हज़ारो रुपये की साड़ी पहन कर भी न होता। सहायता करने से भगवान जिस प्रकार की ऊर्जा आपके मन में भरते हैं वह आपके काम को निश्चित रूप से बढ़ाता ही होगा, घटाता नहीं।
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